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Tuesday 19 January 2016

मां की खामोश ममता की बेजुबां बात....



वो बाहर जरूर पढ़ने गया है, देखना एक दिन बहुत बड़ा इंसान बनेगा,तब मुझे चैन पड़ेगा, आखिर बेटा है मेरा, इनके जाने के बाद, मेरा बेटा ही तो मेरा जीने का सहारा है, बड़ी इच्छा थी रिंकू के पापा की उनका बेटा बाहर पढ़ने जाये, और मन लगाकर खूब पढ़ाई करें ताकि उनके सपने को पूरा करें... और मैनें भी अपने पति की आखिरी इच्छा के लिये दिल पे पत्थर रख लिया....जैसे जैसे मेरा लाल, बड़ा होता गया उसको खुद से दूर करने का डर सताने लगता, फिर अन्दर से आवाज़ आती मोह ठीक है, लेकिन पढ़ाई भी तो जरूरी है, यही सोचकर अपने दिल को सख्त कर लेती, आज मेरा रिंकू बड़ा हो गया है, और बाहर पढ़ने गया हुआ है, कभी-कभी उससे बात हो जाती है,तब ऐसा लगता है कि बस एक बार उसे देख लूं बस एक बार!!!
वो तो बहुत बड़े स्कूल में पढ़ता है, उसको पढ़ाने में उसके मामा ने बहुत मदद की,इनके जाने के बाद बहुत परेशानी होती थी, रिंकू बहुत छोटा और मैं भी बाहर की चीजों से बिल्कुल अंजान, पर उसके मामा ने बड़ी मदद की, और मेरे भाई ने ही कोशिश करके इनकी जगह पर मेरी नौकरी लगवाई। ऑफिस जाती तो रिंकू को उसके मामा के पास छोड़ के जाती फिर आदत सी हो गई,याद भी नहीं कि मैंने अपने लाल को कब गौर से देखा, रिंकू को मैं ज्यादा वक्त ही नहीं दे पाती, क्यूं क्यूंकि उस समय से लेकर अब तक बस रिंकू के भविष्य की चिंता होती, जब सुबह जाती तो रिंकू सो रहा होता और जब रात को वापस आती तो रिंकू सो रहा होता, मन बड़ा बैचेन रहता हर वक्त, हर पल कि मैं कैसी मां हूं जो अपने बेटे को टाईम नहीं दे पाती, आखिर जब मेरा बेटा बड़ा होगा तो क्या जवाब दूंगी कि क्यूं नहीं उसे वक्त दे पाई, दी तो सिर्फ वो फैसिलिटीज, जो एक पिता देता है, ताकि उसे ये एहसास ना हो  कभी कि वो बिन पिता  की औलाद है, इसलिये एक पिता की तरह ही उसको सबकुछ मुहैया करवाती रहती, पिता बनते बनते शायद मेरे अन्दर की औरत मानों खत्म सी हो  गई थी, बस उसकी मां अब एक बाप की भूमिका निभा रही थी, मगर आज उसके बचपन का वीडियो उसके मामा मामी देख रहे थे, तो मैंने भी एक झलक देख लिया, पता नहीं कहां से मेरे अन्दर की ममता फूट फूट के रोने लगी कि मेरा बेटा आज इतना बड़ा हो गया और मैं उसके साथ एक पल भी नहीं गुजार पाई, कितनी मतलबी हो गई ना मैं, ना लोरी ही सुनाई, और ना ही अपने हाथों से उसको खाना ही खिलाया, अब अचानक क्यूं जाग रही ये निष्ठुर ममता, सबकुछ उसके मामा मामी ही करते, बड़ी ही खुद से आज चिढ़ सी मच रही थी, तभी आवाज आती है मां...मां...मां.... मेरा लाल वापस आ गया था, एक पल लगा कि उसको गले लगाकर सबकुछ बोल दूं, मगर फिर खुद को सख्त कर लिया......फिर रिंकू अपने मामा मामी के पास चला गया, आखिर मैं भी तो यही चाहती थी कि पहले वो अपने मामा मामी के पास ही जाये, क्यूंकि जो ममता मैं ना दे सकी वो इन दोनों ने बखूबी दी, और जिसके लिये मैं और मेरा बेटा हमेशा याद रखेंगे, इसके बाद रोज की तरह मैं अपने ऑफिस चली गई.... 
विभा परमार




बचपन में बचपन के खेल

 
आज हमारी चाहत अपने खेल में बिज़ी थी, बहुत सारे बेजुबाऩ दोस्त कुछ गाड़िया टैडी जिनके बड़े ही प्यारे नाम दे रखे थे जैसे सिक्की, जूजू, पूहू, टकलू, टाईगर.... वो तो अपने में मस्त हो गई, लेकिन हम तो फ्लैशबैक में चले गये थे... । जहां हमारा खेलने का अंदाज ही अलग था, जिसमें हम अपने भाई लाले जैनू सहदेव, और बहनें आभा दी, गरिमा दी सुमित भईया लोगों के साथ खेला करते थे गिल्ली डंडा, आह ! कितना मज़ा आता था, लेकिन हमारी मां इस खेल को खेलने के लिये हमेशा मना करती थी, क्यूंकि गिल्ली किसी की आंख में ना लग जाये। 

 खैर मां तो मां होती है जो हमेशा केयर ही करती है,  इसके बाद याद आया कि जब बड़े ताऊ जी की फैमिली आया करती थी तो पापा लोग और हम बच्चे क्रिकेट मैच खेला करते थे, और अपने बड़प्पन के चलते हमकों अंपायर बना दिया करते थे।  जिसमें ये लोग तो खूब चौके छक्के बाॅलिंग कर लिया करते थे और हम शुरू से लेकर आखिरी तक बस खड़े ही रहते, बस अपनी बाॅडी लैंग्वेज से आउट, नाॅट आउट, नो बाॅल,बाईड बाॅल बता दिया करते। 

 पापा बता दिया करते  पर बड़ा बोरिंग था, पापा बोलते की छोटू बेटा सबसे अच्छा काम ये अंपायर का ही होता है बस फिर क्या!!! ये बड़े लोग भी ना, हिहिहिहि.. एक और खेल याद आ रहा आतंकवाद और शहीद... जिसमें आभा दी आर्मी आॅफिसर और हम गरिमा दी लाले भईया सिपाही बनते थे ।  जिसमें जैनू आतंकवादी बनता था!!!! फिर लड़ते और रेखा जी की मशहूर फिल्म का मशहूर गाना गाकर फूल कभी बन जाये अंगारा.. हम सिपाही लोग शहीद हो जाते, फिर सबका बदला हमारी आर्मी आॅफिसर लिया करती थी.... हाय ये बचपन!!!!! 

कितनी जल्दी गुजर गया, हम सब कब बड़े हो गये पता ही नहीं चला..... आज के बच्चों के खेल और हमारे बचपन के खेल में कितना बड़ा अन्तर आ चुका है, पहले कहां बच्चे एक समूह में खेला करते थे और आज के बच्चे प्लास्टिक के खिलौने के साथ खेलकर खुद को एंटरटेन कर रहे है। 

 विभा परमार