Search This Blog

Saturday 20 August 2016

बेटियां

देश का गौरव होती है ये बेटियाँ हर घर की इज्ज़त आबरू होती है ये बेटियाँ | पापा फोन पर अपने दोस्त से बात करते हुए कह रहे थे | अच्छा लगा सुनकर कि चलो आज उनकी आवाज़ में गर्व था, मानों उनकी खुद की बेटी ने मेडल जीता हो। वे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे | ये देखकर मैं खुशी खुशी कॉलेज को जाने लगी | पापा ने मुझे जाते देखकर मां को बुलाया और कर्कश आवाज से बोले, तुम्हें कितनी बार समझाया है कि राग से कहो कि घर से बाहर निकले तो सूट पहन कर ।  ये स्कर्ट पहनकर नहीं । राग की मां, ये ज़माना लड़कियों के लिये सही नहीं ।

 मां ने शाम को मेरे वापस लौटते समझाया और मैं चुपचाप सुनकर अपने कमरे में चली गई । नींद नहीं आ रही थी, बहुत बेचैनी थी । बहुत सवाल उठ रहे थे मन में | आखिर  लड़कियों के लिए ये समाज तब तक साथ है, जब तक समर्पित है उनके लिए ।  फिर हमारा खुद का वजूद, अस्तित्व, ये सब बातें खोखली ! क्या एक लड़की  एक जीती जागती मशीन है, जिसका रिमोट कंट्रोल समाज के उन हितैषियों के पास है जो  अपने हिसाब से मशीन को चलाना जानते है।  ये कैसे लोग है जो डिप्लोमैटिक गेम खेलते है।  एक तरफ तो कहते है, बेटियाँ देश का गौरव है वहीं दूसरी तरफ घर से बाहर निकलो तो सूट पहन कर ।  आखिर  ये कौन से  ज़माने की बात करते है ये । वही लोग है जो लड़कियों के लिये नियम बनाते है, फैसले लेते है और उम्मीद करते है कि हम चुपचाप से उनको फालो करते रहे, कुछ विपरीत ना कहें और कहें वो जो ज़माने को पसंद हो बस।  बड़े कन्फ्यूज़ लोग है। 

याद आ रहा है मुझे मैंने मां से कहा था मां मुझे लिखने का शौक है राईटर बनना चाहती हूँ प्लीज़ मुझे लिखने के लिए मत टोका कीजिए मगर मां ने  पापा का हवाला देकर समझाया रागिनी बेटा देख तेरे पापा को तेरा ये शेरों शायरी, गज़ल लिखना बिल्कुल पसंद नहीं । फिर भी तुझे  वो कभी लिखने को मना नहीं करते, तू लिख मगर सिर्फ़ अपने तक, किसी को पता नहीं चलना चाहिए।   बस और मैंने कोशिश भी की वो लिखूंगीं जो पापा को पसंद है जैसे आर्टिकल, कविताएँ, कहानियाँ  शेरो शायरियां नहीं, मगर पता नहीं क्यूँ लिखने बैठी तब सिर्फ़ शेरो शायरियां  ही उस दिन से लेकर आजतक मैंने कलम नहीं उठाई । 

 पापा की गलती नहीं क्यूंकि वो इस ज़माने का हिस्सा है और मैं भी खुद को इससे अलग नहीं कर सकते मगर फिर ये ज़माना क्यूँ हमको अलग करता है, अलग सोच रखता है बेटियाँ घर की इज्जत तो बेटे क्या है ? बेटियाँ जहां जाये अपने संस्कारों को लेकर चले कायदे के कपड़े सलीखे से बात करे, शर्रमायें और कम बोलें वही बेटे इन सब से आज़ाद ।  उन्हें ये सब बातों से कोई फर्क नहीं।  अगर इन सबका बोझ बेटों पर हो तो शायद हम जैसी बेटियों के साथ रेप ना हो, हमारे मां बाप हमको घर से बाहर भेजने से कतराये नहीं ।  सड़क पर चलते हुए मनचले छेड़े नहीं, गन्दे गन्दे कमेन्ट पास ना करे, अगर कोई लड़की ओहो सारी घर की इज्जत आबरू अपने खिलाफ हो रहे अन्याय के खिलाफ बेबाक बोले तो उसे ही संशय की नज़रों से ना देखे, क्या लड़कियों के लिए ऐसा हो सकता है।  

जाने दो ये तो मेरे मन की कुंठा है जो आज फूट रही है । आगे भी फूटेगी मगर सिर्फ़ अपने तक, बेटियों तुमने अपनी मेहनत से अपने लिये मुकाम बनाया, और इसमें भी समाज बोलता है तुमने देश का मान बढ़ाया ।  तुम फिक्र मत करो यू ही आगे बढ़ती रहो और तुम्हें देखकर हम जैसी हज़ारों रागिनी खुद के लिए रास्ता बनायेंगी