एक महीना
साल
अरसा,
तक
किया है
सिर्फ़
तेरा इन्तज़ार...
सुबह हुई,
सुबह हुई,
शाम हुई
हर पहर
हर पल
किया है
तेरा इन्तज़ार
कभी
तेरा इन्तज़ार
कभी
पत्थर सी मूरत बनी,
कभी
कभी
मोम सी पिघली
पर शायद कभी
पर शायद कभी
खत्म ना होने वाला
किया है
तेरा इन्तज़ार,
अधूरी बातें
तेरा इन्तज़ार,
अधूरी बातें
सुनती है
ये खामोश निगाहें,
शायद
शायद
गहरे राज़
छुपा रखे है
ज़ेहन में अपने,
समेट लिये है
समेट लिये है
सारे ग़म अपने,
जो कभी
जो कभी
पुराने पन्नों पर
नज़र आ जाते है
जो कभी मुस्कुराते
कभी शिकायत करते
बिखेर दी
बिखेर दी
खुशियों की खुशबू
इस क़दर
इस क़दर
कि इन्तज़ार
महसूस होता है
सिर्फ़ तेरे या मेरे अन्दर
सिर्फ़ तेरे या मेरे अन्दर
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