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Wednesday 26 October 2016

कुछ गुम सा है

हाल
है बेहाल
बेहताशा
बेचैनी रहती है
आजकल कलम 
जो मेरी सबसे अच्छी सखी है
जाने क्यूँ वो रहती है
मुझसे रूठी रूठी

गोते लगाती हूँ
शब्दों के समुद्र में
मगर शब्द भी है रूठे रूठे
लहरो सी है डायरी
जिसके कोरे पन्नों में ढूँढती फिरती हूँ
छुपे अल्फाज़



मैला आंचल

कितनी मैली होती है
ये औरतें
जो जन्म से लेकर मृत्यु तक
अपने आँचल में
परिवार को समेटकर चलती है
शायद खुद की परवाह ना करके
भोर से लेकर रजनी तक
वक्त तो होता है तुम्हारे पास मगर सिर्फ़
अपनों के लिये ,अपने लिए नहीं
इज्ज़त को लिबास समझ कर
हमेशा ओढ़कर चलती है
पुरानी परंपराओं, रीति रिवाज़ को
सखी बनाकर रखती है
ताकि दिल में
कभी कोई टीस या सवाल
ना उठे
मगर फिर भी
तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम को
शक़ की नज़र से देखा जाता है अक्सर
शायद तुम्हारा बेबाकी से बोलना
शर्म को उतारना
चूढ़ी, कंगन,
सिंदूर, मंगलसूत्र से मुक्त करना⁠⁠⁠⁠

Tuesday 18 October 2016

प्रेम ढाई आखर का नहीं


प्रेम
लहर है
हवा है
गर्मी में ठंडक
सर्दी की गर्माहट है...
प्रेम
रौद्र है
सृंगार है
ममता है
उम्मीदों का घोंसला है...
प्रेम
समर्पण है
साजिश़ है
अपनापन है
कभी इन्तज़ार है...
प्रेम
बेबसी है
आँसू है
मुस्कान है
तन्हाई है
प्रेम
रिश्तों की मिठास है
कड़वाहट भी है
चेहरे का नूर
कभी कंलकित भी  है...
प्रेम
बेचैनी है
अकेलापन है
कभी
उपहास है तो कभी
उपन्यास है
प्रेम
शब्द है
अर्थ है
कभी
अनर्थ है
कभी असमर्थ है
प्रेम
स्वतंत्र है
कभी बंदिश है
कभी बंधन है...




निशब्द हूँ

निशब्द हूँ
टीस मची है दिल में
रिस रही है भावनायें
खामोशी के समंदर में 
उठ रही जज़्बात की लहरें 
मोहब्बत के पंख फड़फड़ा रहे
आखिर क्यूँ दुश्मन है आपस में सारा जहां
मनभेद का होता है रोज़ संगम 
गलतफैमियों से कर रखी है यारी यहां
जाने क्यूँ पनपती है ईर्ष्या
जाने क्यूँ रहता है मनमुटाव यहां
धरा-अम्बर सी है दूरी
जो मिल भी जाये कभी
मगर रहती है अधूरी
देखा है अक्सर
इंसानी फूलों को रोते हुए
विश्वास की सुगंध को 
धीरे-धीरे खोते हुये
महसूस हुआ और मलाल भी रहा
इंसानियत मानों दब सी गई हो
इंसानों के अहसानों अहम से,
गरीबी है बहुत यहां
मगर लोगों के दिल में
साज़िशे चलती है 
अक्सर दिमाग में
कहना क्या, करना क्या 
भूला हुआ है 
हर इंसा यहां
मारकर अपने 
अंतर्मन की आवाज़ को
रोज़ करता है, कत्ल़ इंसा यहां
सांपों से ज्यादा इंसानों में बसता
है जहरीला ज़हर यहां
देखती हूँ हर 
इंसा को
लड़ते 
इल्ज़ाम लगाते
मय को जीतते 
इंसानियत को हारते
सोचकर समेटकर शब्दों को
काग़ज पर उछालती हूँ 
विद्रोह करके 
विरोध करके
आखिरकार
निशब्द हो जाती हूँ

Wednesday 5 October 2016

यह कौन सी चिड़िया है ..

हमें नहीं मालूम कि
 प्रेम क्या है
 शायद समझ भी नहीं आनी चाहिए
इसकी गहराई,
जितना सोचोगे 
प्रेम भी मिलेगा
उतना ही समझ से परे
जाने कितने किस्से 
कितने ज़ुमले मिलेंगे 
इस प्रेम के
इसीलिए प्रेम को कभी
 जानो ही मत 
सिर्फ़ महसूस करो
प्रेम प्रदर्शित नहीं, अहसास की चीज़ है 

जिस पर लोग फब्तियां कसे, 
जिस को लोग हेय दृष्टि से देखे,
कितना अजीब हैना ये प्रेम
जो कभी आपसे सुबूत नहीं मांगता, 
जो  कभी  उम्मीद नहीं करता,
जो  कभी बंदिशें नहीं लगाता, 

वो तो आज़ाद करता है 
उस दुनिया से 
जिसमें प्रेम छोड़
शायद सबकुछ होता है,

प्रेम समर्पण है, 
प्रेम त्याग है, 
मगर शायद ज़माने ने, 
ज़माने के लोगों ने 
अपने मनोरंजन के लिये 
प्रेम ज़ुमला को जुमला बना डाला 

जिसपर सब 
अपनी प्रेम कहानियाँ, 
अपना प्रेम अनुभव, 
अपना क्रोध निकालते है
मगर फिर भी  प्रेम खामोश है
शायद उसे बेज़ुबान रहना पसंद है
प्रेम की कोई बोलती भाषा नहीं
सिर्फ़ भावना होती है
भावनायें सुनती है
समझती है 
और महसूस करती है
भावनायें अपनी  टीस 
निकालना चाहती है
गुस्से से
अपमान से
ज़हर बोलकर मगर
प्रेम रोकता है 
क्यूँ कि प्रेम समझाता नहीं 
वो तो समझ जाता है



Monday 3 October 2016

यही इश्क है !

रिश्ता 
ना के बराबर,
मोहब्बत 
रंजिशों से
मोहब्बत 
शिकायतों से
नफरतों की सलाखें
दोनों के दरमिया
बेदर्द है सख्त

पेड़ सा खड़ा है वो
अल्फाज़ों में ज़हर
जो ये जताते
कुछ नहीं 
दोनों के दरमिया
अश्कों की बारिश में
 रोज़ भीगना

सिर्फ़ यही इश्क है 
मेरे लिए
फिर भी कहता 
कोई हक़ नहीं

स्त्री की विडम्बना


स्त्री
अपने विचारों से 
आज़ाद है
मगर,
पुरुषों से आज़ाद नहीं
हर रिश्तें में रहती ज़िन्दा
मगर,
बंदिशों से आज़ाद नहीं
समर्पित कर खुद को 
उपकार करे वो
मगर
लांछन से आज़ाद नहीं
दूसरों का अस्तित्व बनाती
मगर
खुद का कोई अस्तित्व नहीं
जिंदगी है उसकी शायद
मगर
उसपर खुद का कोई अधिकार नहीं
सह जाती है सारी पीड़ा,
मगर
अपनी पीड़ा कहने का अधिकार नहीं
सारे सवालों का देती है वो जवाब
मगर
खुद का कोई सवाल नहीं
प्रश्नचिह्न है यहां पुरूषप्रधान
मगर
आबरू का कोई रखवाला नहीं
कितनी मिसाले है यहां स्त्रियों के प्रति
मगर
हर कोई विश्वास पात्र नहीं....