कितनी मैली होती है
ये औरतें
जो जन्म से लेकर मृत्यु तक
अपने आँचल में
परिवार को समेटकर चलती है
शायद खुद की परवाह ना करके
भोर से लेकर रजनी तक
वक्त तो होता है तुम्हारे पास मगर सिर्फ़
अपनों के लिये ,अपने लिए नहीं
इज्ज़त को लिबास समझ कर
हमेशा ओढ़कर चलती है
पुरानी परंपराओं, रीति रिवाज़ को
ये औरतें
जो जन्म से लेकर मृत्यु तक
अपने आँचल में
परिवार को समेटकर चलती है
शायद खुद की परवाह ना करके
भोर से लेकर रजनी तक
वक्त तो होता है तुम्हारे पास मगर सिर्फ़
अपनों के लिये ,अपने लिए नहीं
इज्ज़त को लिबास समझ कर
हमेशा ओढ़कर चलती है
पुरानी परंपराओं, रीति रिवाज़ को
सखी बनाकर रखती है
ताकि दिल में
कभी कोई टीस या सवाल
ना उठे
मगर फिर भी
तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम को
शक़ की नज़र से देखा जाता है अक्सर
शायद तुम्हारा बेबाकी से बोलना
शर्म को उतारना
चूढ़ी, कंगन,
सिंदूर, मंगलसूत्र से मुक्त करना
ताकि दिल में
कभी कोई टीस या सवाल
ना उठे
मगर फिर भी
तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम को
शक़ की नज़र से देखा जाता है अक्सर
शायद तुम्हारा बेबाकी से बोलना
शर्म को उतारना
चूढ़ी, कंगन,
सिंदूर, मंगलसूत्र से मुक्त करना
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