Search This Blog

Sunday 27 November 2016

औरत

औरत
तुम्हें दया
तुम्हें सहनशील
तुम्हें जिस्म की पुड़िया
की मिसाल नहीं दूँगी
तुम हमेशा लफ्ज़ों से
मिसरी घोलो भी नहीं कहूँगी
चरित्रहीनता पर सिर्फ़ तुम्हारा अधिकार है
ये भी मैं नहीं कहूंगी
तुम्हीं हमेशा ओछी परंपराओं में 
शिरकत लो नहीं कहूँगी
घर की इज्ज़त सिर्फ़ 
एक स्त्री, औरत, लड़की के हाथों में ही रहती है
तुम पे ये दोगली बातें भी नहीं थोपूंगी
तुम आज़ाद हो इन दकियानूसी नियमों से
तुम सिर्फ़ विलासिता की वस्तु नहीं
ना ही तुम हर वक्त सजने वाला फरेबी श्रृंगार
और ना ही तुम उन क्षणिक प्रेमियों की 
क्षणिक प्रेमिका हो जो सिर्फ़ कुछ वक्त तक साथ रहे
तुम हो इस धरती पर
इस समाज में
एक उड़ती चिड़िया
जो उड़ना जानती है
ठहरना जानती है,
अपने सपनों को जीना जानती है
जो आज़ाद है
इन खोटी बंदिशों से
जिनके ऊपर
पंख को फैलाना जानती है
तुमसे सिर्फ़ विनती है कि
कभी झूठी परंपराओं का चोला नहीं अोढ़ना
कभी खुद को खूबसूरती के पैमाने पर मत तौलना
जो खुद खोखले हो वो तुम्हें
हर युग,
हर सदी में
हर राह पर
तुम्हारे विचारों से
तुम्हारी चाल से
तुम्हारे रंग रूप से
तुम्हें मापेंगे
पर याद रखना
तुम कठपुतली नहीं इनकी
जिनकी डोर खुद ऊपरवाले के हाथों में है

No comments:

Post a Comment