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Thursday 29 December 2016

कच्ची धूप सा

1.
बहुत 
ढूँढने की
कोशिश करती हूँ 
अपने अंदर की टीस को
जड़ से खत्म करने की
मगर ये
कभी 
कच्ची धूप सी
बिखरी आंधियों सी
सूखी निराशाओं में
तब्दील होकर 
हमेशा मेरे अंदर मौजूद रहती है


2.

बैठा था यूँ ही मैं
तुम्हारी यादों की छाँव में
इश्क की छाँव में
जिसमें तुम थी मौजूद 
मेरे लिखे हर हर्फ़ में
हर सेहरे में 
अचानक पारे सा एक आँसू
हथेली पर आकर सिमटकर बोला
क्या इश्क का दूसरा नाम ही
आँसू होता है







Saturday 24 December 2016

टीस

बहुत
ढूँढने की
कोशिश करती हूँ
अपने अंदर की टीस
जड़ से खत्म करने की
मगर ये
कभी
कच्ची धूप सी
बिखरी आंधियों सी
सूखी निराशाओं में
तब्दील होकर
हमेशा मेरे अंदर मौजूद रहती है

Monday 19 December 2016

काजल की कालिख

नहीं मिटी तो
सिर्फ़
मेरे आँखों पर ज़मी
काजल की
वो कालिख
जिसको देखकर
तुम्हारी सख्त नज़रे
थोड़ी नरम
और
झिझकती खामोशी
मुस्कुराहट
में तब्दील हो जाती थी

Friday 16 December 2016

मिज़ाज़ ए विचार

बड़ी ही निष्ठुर हूँ मैं
जाने कैसे विचारों पर 

अंधविश्वास करती हूँ
आज के दौर की मोहब्बत
काफी बदली हुई है
और समझदार भी
महसूस होता है अक्सर कि
आज की मोहब्बत
नागफनी सी कटीली है जिसमें
रहकर मानों
संवेदनाएं जलकर राख हो चुकी हो
कभी गुज़रे वक्त में जो बंदिशें
देखभाल जताती रही
आज वे ही शायद बेड़िया बन चुकी है
आपस में कांटों सी खीझ 
निरंतर सबके मनों पर राज़ करती है
आखिर ऐसा क्या हुआ
जिसकी गहरी चुभन
दिन पे दिन विरोध और प्रतिशोध का
रूप रखती जा रही है




Thursday 15 December 2016

साल जी (दोस्त)

गुज़र रहा है हर पल, हर वक्त, हर साल। 
अजीब भी है और कश्मकश भी कि हर साल की तरह ये साल भी जा रहा और एक नया साल दस्तक दे रहा है । अरे अभी अभी की तो बात ही थी तुम्हें आये हुए और इतनी जल्दी तुम्हारा जाने का वक्त भी हो चला साल 2016 ।
 ऐसी ही कश्मकश सबको रहती होगी ना] कितनी शिकायतें, कितनी खुशियाँ, कितने ज़ज्बात दबा रखें होंगे। कितनी लड़ाई की होगी ना नये साल से कि तुम्हारी वजह से मेरा पिछला साल चला गया, कुछ दिनों तक पिछले वाले साल को मिस भी किया होगा। 
फिर धीरे धीरे इस नये साल ने तुम्हारे दिल पर अपना कब्ज़ा ज़मा लिया और अब इसके जाने का भी वक्त हो चला ये क्या अब तो साल जी आपके लिए एक गाना याद आ रहा है कि "अभी ना जाओ छोड़ के कि दिल अभी भरा नहीं" आजकल दिल ही नहीं आँखें भी भर आती है। 
  तुम्हारे जाने के डर से और सोचते है कि काश तुम बिछड़ते तो उम्मीद भी रहती तुम्हारे मिलने की मगर तुम तो जा रहे हो हमेशा हमेशा के लिए! अब तुम ही बताओ कैसे तुम्हें गुड बाय कहूँ पहले अपनी मर्ज़ी से आते हो और अपनी मर्ज़ी से चले जाते हो साल तुम्हें याद है जब तुम आये थे जनवरी की पहली तारीख को तुमसे मेरी कितनी रंजिश थी क्यूँ कि तुमसे पहले भी मेरा एक साल दोस्त चला गया और ना जाने उससे पहले वाले कितने साल (दोस्त)। 
कभी कभी लगता है कि ये कैसा संजोग है यहां साल जाते है, लोग जाते है, वक्त जाता है, उम्र जाती है, सबकुछ तो जाता ही है। बड़ी विडंबना है ये और इन्हीं विडंबनाओं में विशेषताएँ भी है। सबसे बड़ी विशेषता यही है कि जो आया है वो जायेगा ज़रूर बस कुछ का समय निश्चित है और कुछ का अनिश्चित।
 मगर हर कोई किसी ना किसी वजह से इन गुज़रे सालों को याद रखता है। अपने अपने अनुभवों के आधार पर आने जाने पर ही कितने ग्रंथ, कितनी किताबें लिखी जा चुकी है। बता रखा है कि इतना मोह मत करो। ये सच्चाई भी है और तर्क भी मगर फिर भी टिक टिक तो होती ही है ना, हम सेलिब्रेशन भी करते है और दुख भी मनाते है। 
खैर, फिर से दिल में टिक टिक हो रही है और दीवार पर लगी घड़ी की सुईयों की रफ्तार तेज़ जो इशारे में बता रही कि ये साल भी पिछले साल की तरह निकल रहा है और हम बस उसके इशारे को महसूस कर रहे मगर रोक नहीं पा रहे, ऐसे ही हम सबको भी ढँलना है इन सालों की तरह ही। 
 अलविदा 2016

तुम बस एक कल्पना हो

तुम कोई और नहीं
बस एक कल्पना हो
मेरी कल्पना और
मेरी कल्पना के साये रोज़
मेरे ख्वाबों में दस्तक देते है
तुम गुलाबी सी मुस्कुराहट लिए
मेरे सामने खड़ी हो
हवाओं सी हल्की तुम अपने
बिखरी ज़ुल्फों को
समुद्र से गहरी आँखों से हटाती फिरती
मानों वो तुम्हारे साथ खेल रही हों
तुम्हें देखकर लगता है कि
मैं तुम्हें बार बार नहीं
हज़ार बार देखूं
और तब तक देखता रहूं
जब तक मेरे
बसर-ए-ख्वाब़ की
सुबह ना हो जाए

Monday 12 December 2016

काश ! वक्त कुछ ऐसा होता

















काश ! 
वक्त कुछ ऐसा होता
थोड़ा रंग बिरंगा होता


जो चहकता
प्रेम के गीत गुनगुनाता
जिसमें तुम वास्तविक होते
भंवरे से तुम
मोहब्बत का रसपान करते

काश !
तुम मेरे काल्पनिक
किरदार ना होते
और ना ही
निराशाओं की परछाई होते
जो सिर्फ़ डराती है

अक्सर
तुम ख्वाबों में आकर
मेरे सामने पीठ घुमाकर
खड़े रहते हो
कुछ ना बोलकर सिर्फ़
खामोशी को ओड़कर रखते हो

काश !
तुम हकीकत होते
मेरी हकीकत
तुम कोई
ख्वाब नहीं
ख्याल नहीं
ना होते
मगर तुम तो सिर्फ़
मेरी कल्पना निकले

जो बेहद हसीं है
बेहद करीब है
मगर है सिर्फ़
एक ख्वाब
हसीं ख्वाब

काश !
वक्त कुछ ऐसा होता
वक्त थोड़ा रंग बिरंगा होता

Thursday 1 December 2016

अन्तर्द्वन्द

मेरे अन्दर

चलता रहता है

एक अन्तर्द्वन्द

जैसे हवा चलती है,

पानी बहता है

और साँसें चलती है

सोचता हूँ अक्सर

अगर हवा रुक जाये तो

दम घुटता है

पानी रुक जाये तो

सड़ जाता है

सांस रुक जाये

तो मौत हो जाती है

मगर मेरे अन्दर का

अन्तर्द्वन्द चलता रहता है

आखिर ये क्यूँ नहीं रुकता

कभी सवालों को लेकर

कभी मिले जवाबों को लेकर

रास्ते से गुज़रकर हर ठोकर से पूछता हूँ

कई दिन से भूखे उस गरीब की भूख से पूछता हूँ

कि मेरे अंदर का अन्तर्द्वन्द

खत्म क्यूँ नहीं होता

जब रास्तों की मंज़िल मिल जाती है

जब बेमानी से ज़रूरते पूरी हो जाती है

जब झूठ को सच समझ लिया जाता है

तो मेरे अन्दर का अन्तर्द्वन्द

शांत क्यूँ नहीं होता

आखिर क्यूँ

हमेशा खुद को

अन्तर्द्वन्द के अँधेरों में पाया

जो रोज़ हर रोज़ बढ़ता रहता है

कहीं कोई उजाला नहीं दिखता

सिर्फ़ दिखता है मेरे अंदर का

एक अन्तर्द्वन्द

प्रेम

ये कोई बंधन नहीं

और ना ही

कोई बोझ 

प्रेम तो सिर्फ़ प्रेम होता है

चाहे तुम इस पर
कितने ही शोध क्यूँ ना कर लो

इसके शोर में

इसकी खामोशी में

इसकी बौखलाहट में

भी ये खुद छुपा होता है

चाहे तुम इसको कितने ही नाम 

क्यूँ ना दे दो

चाहे कितनी ही कहानियाँ गढ़ दो

चाहे तुम इसका उपहास बना दो

मगर ये खुद आहत ना होकर

दूसरों को प्रभावित करता है

तुम सुनो मेरी बात

प्रेम में कोई खास लगाव नहीं

पर प्रेम से जरूर लगाव है

इसका कोई स्वार्थ नहीं

कोई खासा कारण नहीं

ये तो करुणा दया 

छलकाता है 

जैसे 

कोई मां ममता लुटाती हो

अक्सर सुनता आया हूँ

प्रेम किसी वजह से होता है

मगर मेरा दिल नहीं मानता

हमेशा इसकी ख़िलाफत करता है

और कहता है

प्रेम सिर्फ़ प्रेम होता है

इसे करने के लिए 
किसी वजह की जरूरत नहीं