अजीब सा खालीपन
मौजूद रहता है
मेरे अंदर
जिसे उम्मीदों के मरहम से
हर रोज़ भरने की
कोशिश करती हूँ
मगर कोशिश में नाकामी मिलती है
ये जो
खालीपन का पतझढ़ है ना
इसकी उम्र बहुत लम्बी होती है
और इस उम्र में ना जाने
कितने सुलझे हुए वसंत दस्तक देने आते है
जो ठहरते भी है लेकिन
सिर्फ़ कुछ वक्त के लिए
शायद
ठहरने की उम्र खालीपन से बहुत कम रहती होगी
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