मैं सिर्फ़
इक अंधेरा हूँ
रात का अँधेरा
जो मौजूद रहता है अक्सर
तुम्हारी तन्हाई में
मायूसी में
और अकेलेपन में
अँधेरे (मेरी) की आहें
सिसकती है हर रोज़
पर ये आहें तुम्हें सुनाई नहीं देती
क्योंकि तुम ठहरे दिन के उजियारे
और उजियारे अँधेरे का
आखिर क्या रब्त़
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