हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पर दम निकले,बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले...
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Tuesday 7 March 2017
अंतरद्वंद
कोई अंर्तद्वंद चलता है निरंतर अंतर्मन में शायद है कोई ऐसी टीस जिसकी कुलबुलाहट ज़मी के दरीचों में अक्सर सिसकती है कितनी ही बार दरीचों को कुदेरा है मैंने कभी खामोशी की सिलवटों को ओढ़कर कभी खुद को दोषी बनाकर
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